Biography of swami shardanand in hindi language


स्वामी श्रद्धानन्द

स्वामी श्रद्धानन्द

भारत सरकार ने स्वामी श्रद्धानन्द की स्मृति में सन १९७० में डाकटिकट जारी किया।
जन्म मुंशीराम विज
22 फ़रवरी 1856
Tahlwan, जालन्धर, पंजाब
मौत 23 दिसम्बर 1926(1926-12-23) (उम्र 70 वर्ष)
दिल्ली, भारत
मौत की वजह अब्दुल रशीद नाम के एक उन्मादी द्वारा गोली मारकर हत्या
पेशा समाजसेवा, पत्रकार, स्वतन्त्रता सेनानी, अध्यापक

स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती (मुंशीराम विज ; 22 फरवरी, 1856 - 23 दिसम्बर, 1926) भारत के शिक्षाविद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा आर्यसमाज के संन्यासी थे जिन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती की शिक्षाओं का प्रसार किया। वे भारत के उन महान राष्ट्रभक्त संन्यासियों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपना जीवन स्वाधीनता, स्वराज्य, शिक्षा तथा वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया था। उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय सहित अनेक शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की और हिन्दू समाज व भारत को संगठित करने तथा 1920 के दशक में शुद्धि आन्दोलन चलाने में महती भूमिका अदा की। उन्होने अछूतोद्धार के लिये भी महान कार्य किया। डॉ भीमराव आम्बेडकर ने सन १९२२ में कहा था कि श्रद्धानन्द अछूतों के "महानतम और सबसे सच्चे हितैषी" हैं।[1]

काग्रेस में उन्होंने 1919 से लेकर 1922 तक सक्रिय रूप से महत्त्वपूर्ण भागीदारी की। 1922 में 'गुरु के बाग के सत्याग्रह' के समय अमृतसर में एक प्रभावशाली भाषण दिया । सिक्खों के धार्मिक अधिकार की रक्षार्थ उन्होंने सत्याग्रह किया जिस पर 1922 में अंग्रेज सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।

जीवन परिचय

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स्वामी श्रद्धानन्द (मुंशीराम विज) का जन्म 22 फरवरी सन् 1856 (फाल्गुन कृष्ण त्र्योदशी, विक्रम संवत् 1913) को पंजाब प्रान्त के जालन्धर जिले के तलवान ग्राम में एक खत्री परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री नानकचन्द विज ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा शासित यूनाइटेड प्रोविन्स (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में पुलिस अधिकारी थे। उनके बचपन का नाम बृहस्पति विज और मुंशीराम विज था, किन्तु मुन्शीराम सरल होने के कारण अधिक प्रचलित हुआ।

पिता का स्थानान्तरण अलग-अलग स्थानों पर होने के कारण उनकी आरम्भिक शिक्षा अच्छी प्रकार नहीं हो सकी। लाहौर और जालंधर उनके मुख्य कार्यस्थल रहे। एक बार आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती वैदिक-धर्म के प्रचारार्थ बरेली पहुंचे। पुलिस अधिकारी नानकचन्द विज अपने पुत्र मुंशीराम विज को साथ लेकर स्वामी दयानन्द सरस्वती जी का प्रवचन सुनने पहुँचे। युवावस्था तक मुंशीराम विज ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते थे। लेकिन स्वामी दयानन्द जी के तर्कों और आशीर्वाद ने मुंशीराम विज को दृढ़ ईश्वर विश्वासी तथा वैदिक धर्म का अनन्य भक्त बना दिया।

वे एक सफल वकील बने तथा काफी नाम और प्रसिद्धि प्राप्त की। वकालत के साथ आर्य समाज जालंधर के जिला-अध्यक्ष के पद से उनका सार्वजनिक जीवन प्रारम्भ हुआ। आर्य समाज में वे बहुत ही सक्रिय रहते थे। महर्षि दयानन्द के महाप्रयाण के बाद उन्होने स्वयं को स्व-देश, स्व-संस्कृति, स्व-समाज, स्व-भाषा, स्व-शिक्षा, नारी कल्याण, दलितोत्थान, स्वदेशी प्रचार, वेदोत्थान, पाखण्ड खण्डन, अन्धविश्‍वास-उन्मूलन और धर्मोत्थान के कार्यों को आगे बढ़ाने में पूर्णतः समर्पित कर दिया। गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना, अछूतोद्धार, शुद्धि, सद्धर्म प्रचार, पत्रिका द्वारा धर्म प्रचार, सत्य धर्म के आधार पर साहित्य रचना, वेद पढ़ने व पढ़ाने की व्यवस्था करना, धर्म के पथ पर अडिग रहना, आर्य भाषा के प्रचार तथा उसे जीवीकोपार्जन की भाषा बनाने का सफल प्रयास, आर्य जाति के उन्नति के लिए हर प्रकार से प्रयास करना आदि ऐसे कार्य हैं जिनके फलस्वरुप स्वामी श्रद्धानन्द अनन्त काल के लिए अमर हो गए।

उनका विवाह श्रीमती शिवा देवी के साथ हुआ था। जब आप ३५ वर्ष के थे तभी शिवा देवी स्वर्ग सिधारीं। उस समय उनके दो पुत्र और दो पुत्रियां थीं। इन्द्र विद्यावाचस्पति उनके ही पुत्र थे। सन् १९१७ में उन्होने सन्यास धारण कर लिया और स्वामी श्रद्धानन्द के नाम से विख्यात हुए।

गुरुकुल की स्थापना

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सन् 1901 में मुंशीराम विज ने अंग्रेजों द्वारा जारी शिक्षा पद्धति के स्थान पर वैदिक धर्म तथा भारतीयता की शिक्षा देने वाले संस्थान "गुरुकुल" की स्थापना की। हरिद्वार के कांगड़ी गांव में गुरुकुल विद्यालय खोला गया। इस समय यह मानद विश्वविद्यालय है जिसका नाम गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय है। गांधी जी उन दिनों अफ्रीका में संघर्षरत थे। महात्मा मुंशीराम विज जी ने गुरुकुल के छात्रों से 1500 रुपए एकत्रित कर गांधी जी को भेजे। गांधी जी जब अफ्रीका से भारत लौटे तो वे गुरुकुल पहुंचे तथा महात्मा मुंशीराम विज तथा राष्ट्रभक्त छात्रों के समक्ष नतमस्तक हो उठे। स्वामी श्रद्धानन्द जी ने ही सबसे पहले उन्हे महात्मा की उपाधि से विभूषित किया और बहुत पहले यह भविष्यवाणी कर दी थी कि वे आगे चलकर बहुत महान बनेंगे।

पत्रकारिता एवं हिन्दी-सेवा

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उन्होने पत्रकारिता में भी कदम रखा। वे उर्दू और हिन्दी भाषाओं में धार्मिक व सामाजिक विषयों पर लिखते थे। बाद में स्वामी दयानन्द सरस्वती का अनुसरण करते हुए उनने देवनागरी लिपि में लिखे हिन्दी को प्राथमिकता दी। उनका पत्र सद्धर्म प्रचारक पहले उर्दू में प्रकाशित होता था और बहुत लोकप्रिय हो गया था, किन्तु बाद में उनने इसको उर्दू के बजाय देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी में निकालना आरम्भ किया। इससे इनको आर्थिक नुकसान भी हुआ।[2] उन्होने दो पत्र भी प्रकाशित किये, हिन्दी में अर्जुन तथा उर्दू में तेज। जलियांवाला काण्ड के बाद अमृतसर में कांग्रेस का ३४वां अधिवेशन( दिस्म्बर 1919 ) हुआ[3]। स्वामी श्रद्धानन्द ने स्वागत समिति के अध्यक्ष के रूप में अपना भाषण हिन्दी में दिया और हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित किए जाने का मार्ग प्रशस्त किया।

स्वतन्त्रता आन्दोलन

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उन्होने स्वतन्त्रता आन्दोलन में बढ-चढकर भाग लिया। गरीबों और दीन-दुखियों के उद्धार के लिये काम किया। स्त्री-शिक्षा का प्रचार किया। सन् 1919 में स्वामी जी ने दिल्ली में जामा मस्जिद क्षेत्र में आयोजित एक विशाल सभा में भारत की स्वाधीनता के लिए प्रत्येक नागरिक को पांथिक मतभेद भुलाकर एकजुट होने का आह्वान किया था।

शुद्धि

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मुख्य लेख: शुद्धि आंदोलन

स्वामी श्रद्धानन्द ने जब कांग्रेस के कुछ प्रमुख नेताओं को "मुस्लिम तुष्टीकरण की घातक नीति" अपनाते देखा तो उन्हें लगा कि यह नीति आगे चलकर राष्ट्र के लिए विघटनकारी सिद्ध होगी। इसके बाद कांग्रेस से उनका मोहभंग हो गया। दूसरी ओर कट्टरपंथी मुस्लिम तथा ईसाई हिन्दुओं का मतान्तरण कराने में लगे हुए थे। स्वामी जी ने असंख्य व्यक्तियों को आर्य समाज के माध्यम से पुनः वैदिक धर्म में दीक्षित कराया। उनने गैर-हिन्दुओं को पुनः अपने मूल धर्म में लाने के लिये शुद्धि नामक आन्दोलन चलाया और बहुत से लोगों को पुनः हिन्दू धर्म में दीक्षित किया। स्वामी श्रद्धानन्द पक्के आर्यसमाजी थे, किन्तु सनातन धर्म के प्रति दृढ़ आस्थावान पंडित मदनमोहन मालवीय तथा पुरी के शंकराचार्य स्वामी भारतीकृष्ण तीर्थ को गुरुकुल में आमंत्रित कर छात्रों के बीच उनका प्रवचन कराया था।

स्वामी श्रद्धानन्द ने स्वेछा एवं सहमति के पश्चात पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मलकान राजपूतों को शुद्धि कार्यक्रम के माध्यम से हिन्दू धर्म में वापसी कराई। शासन की तरफ से कोई रोक नहीं लगाई गई थी जबकि ब्रिटिश काल था।

हत्या

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23 दिसम्बर 1926 को नया बाजार स्थित उनके निवास स्थान पर अब्दुल रशीद नामक एक उन्मादी धर्म-चर्चा के बहाने उनके कक्ष में प्रवेश करके गोली मारकर इस महान विभूति की हत्या कर दी। उसे बाद में फांसी की सजा हुई।

उनकी हत्या के दो दिन बाद अर्थात 25 दिसम्बर, 1926 को गुवाहाटी में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में जारी शोक प्रस्ताव में जो कुछ कहा वह स्तब्ध करने वाला था। गांधी के शोक प्रस्ताव के उद्बोधन का एक उद्धरण इस प्रकार है “मैंने अब्दुल रशीद को भाई कहा और मैं इसे दोहराता हूँ। मैं यहाँ तक कि उसे स्वामी जी की हत्या का दोषी भी नहीं मानता हूँ। वास्तव में दोषी वे लोग हैं जिन्होंने एक दूसरे के विरुद्ध घृणा की भावना को पैदा किया। इसलिए यह अवसर दुख प्रकट करने या आँसू बहाने का नहीं है।“

गांधी ने अपने भाषण में यह भी कहा,”… मैं इसलिए स्वामी जी की मृत्यु पर शोक नहीं मना सकता। हमें एक आदमी के अपराध के कारण पूरे समुदाय को अपराधी नहीं मानना चाहिए। मैं अब्दुल रशीद की ओर से वकालत करने की इच्छा रखता हूँ।“ उन्होंने आगे कहा कि “समाज सुधारक को तो ऐसी कीमत चुकानी ही पढ़ती है। स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या में कुछ भी अनुपयुक्त नहीं है। “अब्दुल रशीद के धार्मिक उन्माद को दोषी न मानते हुये गांधी ने कहा कि “…ये हम पढ़े, अध-पढ़े लोग हैं जिन्होंने अब्दुल रशीद को उन्मादी बनाया। स्वामी जी की हत्या के पश्चात हमें आशा है कि उनका खून हमारे दोष को धो सकेगा, हृदय को निर्मल करेगा और मानव परिवार के इन दो शक्तिशाली समूहों के विभाजन को मजबूत कर सकेगा।“ (यंग इण्डिया, 1926)।

साहित्य एवं कृतियाँ

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स्वामी श्रद्धानन्द द्वारा रचित साहित्य को अनेक भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे-

  • (१) स्वामी दयानन्द सम्बन्धित साहित्य- स्वामी जी ने पूना प्रवचन अर्थात् उपदेश मञ्जरी का मराठी से अनुवाद करवाकर उर्दू में प्रकाशित किया था। स्वामी दयानन्द के पत्र-व्यवहार को 1910 में सर्वप्रथम प्रकाशित किया था। ‘आदिम सत्यार्थ प्रकाश’ और ‘आर्यसमाज के सिद्धान्त’ को सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम संस्करण की समीक्षा के अंतर्गत प्रकाशित किया था। इसके अलावा स्वामी दयानन्द की संक्षिप्त जीवनी ‘युग-विधाता तत्त्ववेता दयानन्द’, ‘शास्त्रार्थ बरेली’ के लेखन में सहयोग, उर्दू ‘ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका’ की भूमिका, पं0 लेखराम लिखित एवं मास्टर आत्माराम अमृतसरी लिखित ‘महर्षि दयानन्द जीवन चरित’ की भूमिका का लेखन किया।
  • (२) पण्डित लेखराम सम्बंधित साहित्य- स्वामी जी ने पं0 लेखराम के बलिदान के पश्चात् उनका जीवन चरित ‘आर्य पथिक लेखराम का जीवन वृत्तांत’ के नाम से लिखा। उनके लेखों का संग्रह उर्दू में ‘कुल्यात आर्य मुसाफिर’ के नाम से प्रकाशित करवाया।
  • (३) आर्यसिद्धान्त सम्बन्धी साहित्य- स्वामी श्रद्धानन्द द्वारा वैदिक सिद्धांतों से सम्बंधित अनेक छोटे-बड़े ट्रैक्ट्स और पुस्तकें लिखी गई थीं, जैसे आर्य संगीतमाला, वर्ण व्यवस्था, पुराणों की नापाक तालीम से बचो, क्षात्र धर्म पालन का गैर-मामूली मौका, वेदानुकूल संक्षिप्त मनुस्मृति, पारसी मत और वैदिक धर्म, वेद और आर्यसमाज, पंच महायज्ञों की विधि, विस्तारपूर्वक संध्या विधि, आर्यों की नित्यकर्म विधि, मानव धर्म शास्त्र तथा शासन पद्धति, यज्ञ का पहला अंग, मुक्ति-सोपान, ‘सुबहे उम्मीद’ उर्दू (इसका हिंदी अनुवाद ‘आशा की उषा’ के नाम से प्राध्यापक राजेन्द्र जिज्ञासु द्वारा किया गया था।) इस पुस्तक में स्वामीजी ने मैक्समूलर के वेद मन्त्रों की व्याख्या की स्वामी दयानन्द के वेद भाष्य से तुलना कर महर्षि के भाष्य को श्रेष्ठ सिद्ध किया था। द फ्यूचर ऑफ आर्यसमाज - ए फोरकास्ट (अंग्रेजी) में आर्यसमाज के भविष्य की योजनाओं पर दिये गये विचार हैं।
  • (४) पत्र-त्रिकाओं का परिचय : स्वामी जी द्वारा उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी में पत्र-पत्रिकाएं निकाली गईं, जिनके नाम हैं- सद्धर्म प्रचारक, श्रद्धा, तेज (उर्दू), लिबरेटर (अंग्रेजी) बहुत लोकप्रिय हुए।
  • (५) ईसाई-इस्लाम मत सम्बंधित : ईसाई पक्षपात और आर्यसमाज, खतरे का घंटा अर्थात मुहम्मदी षडयंत्र का रहस्यभेद, हिन्दू संगठन, हिन्दू मुस्लिम इत्तहाद की कहानी, मेरा आखिरी मश्वरा, हिन्दुओं सावधान, तुम्हारे धर्म-दुर्ग पर रात्रि में छिपकर धावा बोला गया, अंधा इतिकाद और खुफिया जिहाद, ‘द हिस्ट्री ऑफ असैसिन्स’ (अंग्रेजी में इस्लाम के इतिहास से सम्बंधित पुस्तक) का अनुवाद स्वामी जी द्वारा प्रकाशित किया गया था।
  • (६) समाज सुधार सम्बन्धी साहित्य : ‘आचार, अनाचार और छूतछात’, उत्तराखण्ड की महिमा, जाति के दीनों को मत त्यागो, वर्तमान मुख्य समस्या-अछूतपन के कलंक को दूर करो, गढ़वाल में 1975 (सं0) का दुर्भिक्ष और उसके निवारणार्थ गुरुकुल-दल का कार्य। वर्तमान मुख्य समस्या अछूतपन के कलंक को दूर करो।
  • (७) आन्दोलन सम्बन्धी साहित्य : बन्दीघर के विचित्र अनुभव (गुरु का बाग मोर्चे में जेल के अनुभव), आर्यसमाज एंड इट्स डेट्रक्टर्स: अ विंडीकेशन ( पटियाला अभियोग सम्बंद्दी) एक मांस प्रचारक महापुरुष की गुप्त लीला का प्रकाश, आर्यसमाज के खानाजाद दुश्मन, सद्धर्म प्रचारक का पहला लायबल केस।
  • (८) आपबीती : दुःखी दिल की पुरदर्द दास्ताँ।
  • (९) स्वामी जी द्वारा सद्धर्म प्रचारक में प्रकाशित वेद मन्त्रों की व्याख्या को लब्भु राम नैय्यड़ ने संकलित कर धर्मोपदेश के नाम से प्रकाशित किया था।
  • (१०) ‘इनसाइड द कांग्रेस’ उनके राजनीतिक जीवन से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण लेखों का संग्रह है, जो लिबरेटर अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित हुए थे, जिन्हें देशबंधु गुप्ता ने संकलित कर प्रकाशित किया था।
  • (११) गुरुकुल कांगड़ी से स्वामी श्रद्धानन्द सम्बंधित साहित्य को डाॅ विष्णुदत्त राकेश एवं डाॅ जगदीश विद्यालंकार द्वारा संकलित कर प्रकाशित किया गया है। जैसे ‘श्रुति विचार सप्तक’ (वैदिक चिंतन तथा भारतीय साहित्य से सम्बंधित सात विनिबंध हैं।) महात्मा गाँधी और गुरुकुल (स्वामी श्रद्धानन्द, गुरुकुल कांगड़ी और महात्मा गाँधी के संबंधों का वर्णन है। स्वामी श्रद्धानन्द की सम्पादकीय टिप्पणियां (स्वामी जी द्वारा सद्धर्म प्रचारक और श्रद्धा में लिखे गए सम्पादकीयों का संग्रह है।) दीक्षालोक (गुरुकुल कांगड़ी में प्रदत्त दीक्षांत भाषणों एवं सारस्वत व्याख्यानों का संग्रह है।) कुलपुत्र सुनें (समय समय पर गुरुकुल कांगड़ी में दिए गए भाषण और प्रकाशित लेखों का संग्रह है।) स्वामी श्रद्धानन्द और उनका पत्रकार कुल (डाॅ0 विष्णुदत्त राकेश द्वारा प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित स्वामी श्रद्धानन्द और गुरुकुल कांगड़ी के पत्रकार स्नातकों के पत्रकार रूप में कार्यों का वर्णन है।)

संदर्भ ग्रंथसूची

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  • The Arya Samaj and Its Detractors: Spick Vindication, Rama Deva.

    Published unreceptive s.n, 1910.

  • Hindu Sangathan: Saviour swallow the Dying Race, Published fail to see s.n., 1924.
  • Inside Congress, by Mahatma Shraddhanand, Compiled by Purushottama Rāmacandra Lele. Published by Phoenix Publications, 1946.
  • Kalyan Marg Ke Pathik (Autobiography:Hindi), New Delhi.

    n.d.

  • Autobiography (English Translation), Edited by M. R. Jambunathan. Published by Bharatiya Vidya Bhavan, 1961

पठनीय

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  • Swami Shraddhanand, by Satyadev Vidyalankar, ed. by Indra Vidyavachaspati. Delhi, 1933.
  • Swami Shraddhanand (Lala Munshi Ram), by Aryapathik Lekh Force.

    Jallandhar. 2020 Vik.

  • Swami Shraddhanand, moisten K.N. Kapur. Arya Pratinidhi Sabha, Jallandhar, 1978.
  • Swami Shraddhanand: His Convinced and Causes, by J. Well-ordered. F. Jordens. Published by City University Press, 1981.
  • Section Two:Swami Shraddhanand . Modern Indian Political Thought, by Vishwanath Prasad Varma.

    In print by Lakshmi Narain Agarwal, 1961. Page 447.

  • Chapt XI: Swami Shraddhanand. Advanced Study in the World of Modern India : 1920–1947. toddler G. S. Chhabra. Published jam Sterling Publishers, 1971. Page 211
  • Pen-portraits and Tributes by Gandhiji: '(Sketches of eminent men and body of men by Mahatma Gandhi)', by Statesman, U.

    S. Mohan Rao. Obtainable by National Book Trust, Bharat, 1969. Page 133

  • Swami Shraddhanand – Indian freedom fighters: struggle summon independence. Anmol Publishers, 1996. ISBN 81-7488-268-5.
  • Telegram to Swami Shraddhanand, (2 Oct 1919) – Collected Works, spawn Gandhi.

    Published by Publications Partitioning, Ministry of Information and Display, Govt. of India, 1958. v.16. Page 203.

  • An article on Mentor Shraddhanand in "The Legacy topple The Punjab" by R Set Chopra, 1997, Punjabee Bradree, Calcutta,

सन्दर्भ

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इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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